बच्चों को पढ़ाते समय शिक्षक कब और क्यों हो जाता है बेबस? जानिए! इससे बचने के उपाय 


शिक्षक की बेबसी एक ऐसा विषय है जिस पर शिक्षाशास्त्री और मनोवैज्ञानिक लंबे समय से बहस कर रहे हैं। कुछ का मानना है कि शिक्षकों को अपने छात्रों को आदर्शों और मूल्यों को सिखाने से पहले खुद को उन मूल्यों पर जीने के लिए प्रतिबद्ध करना चाहिए। 

अन्य का मानना है कि शिक्षक अपने छात्रों को आदर्शों और मूल्यों को सिखाने के लिए आवश्यक कौशल और ज्ञान प्रदान कर सकते हैं, भले ही वे व्यक्तिगत रूप से उन मूल्यों को पूरी तरह से जीने में सक्षम न हों।



शिक्षक की बेबसी के शिक्षाशास्त्रीय निहितार्थ

शिक्षक की बेबसी के कई शिक्षाशास्त्रीय निहितार्थ हैं।

सबसे पहले, यह छात्रों के लिए भ्रम पैदा कर सकता है। यदि एक शिक्षक छात्रों को ईमानदारी और सच्चाई के बारे में सिखा रहा है, लेकिन खुद झूठ बोल रहा है, तो छात्र यह सोचना शुरू कर सकते हैं कि ईमानदारी और सच्चाई वास्तव में महत्वपूर्ण नहीं हैं।

दूसरा, शिक्षक की बेबसी छात्रों की सीखने की क्षमता को प्रभावित कर सकती है। यदि छात्र अपने शिक्षकों में विश्वास नहीं करते हैं, तो वे उनके निर्देशों का पालन करने या उनके साथ बातचीत करने के लिए अधिक अनिच्छुक हो सकते हैं।

तीसरा, शिक्षक की बेबसी शिक्षकों की व्यावसायिक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकती है। यदि माता-पिता और समुदाय के सदस्यों को पता चलता है कि एक शिक्षक अपने छात्रों को जो आदर्श सिखा रहा है, वह खुद उन आदर्शों पर जीने में सक्षम नहीं है, तो वे शिक्षक पर विश्वास करना बंद कर सकते हैं।


शिक्षक की बेबसी को कम करने के तरीके

शिक्षक की बेबसी को कम करने के लिए कई तरीके हैं। 

सबसे पहले, शिक्षकों को अपने छात्रों को आदर्शों और मूल्यों को सिखाने से पहले खुद को उन मूल्यों पर जीने के लिए प्रतिबद्ध करना चाहिए। इसका मतलब यह है कि शिक्षकों को अपने स्वयं के व्यवहार और निर्णयों पर विचार करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे उन मूल्यों के अनुरूप हों जिन्हें वे सिखाना चाहते हैं।

दूसरा, शिक्षकों को अपने छात्रों के साथ ईमानदार होना चाहिए। यदि एक शिक्षक अपने छात्रों को बताता है कि वह कभी-कभी गलतियाँ करता है, तो यह छात्रों को यह समझने में मदद कर सकता है कि हर कोई आदर्श नहीं है।

तीसरा, शिक्षकों को अपने छात्रों के साथ आदर्शों और मूल्यों पर चर्चा करनी चाहिए। इससे छात्रों को यह समझने में मदद मिल सकती है कि ये मूल्य क्यों महत्वपूर्ण हैं और उन्हें कैसे लागू किया जा सकता है।



शिक्षक की बेबसी एक जटिल मुद्दा है। हालांकि, यह स्पष्ट है कि शिक्षकों को अपने छात्रों को आदर्शों और मूल्यों को सिखाने के लिए आवश्यक कौशल और ज्ञान प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए। ऐसा करने से छात्रों को यह समझने में मदद मिल सकती है कि ये मूल्य क्यों महत्वपूर्ण हैं और उन्हें कैसे लागू किया जा सकता है।



✍️  लेखक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

Post a Comment

 
Top