परिषदीय विद्यालयों में नियमित सफाई को लेकर नीतिगत दोहरेपन का विश्लेषण


उत्तर प्रदेश में परिषदीय विद्यालयों की संख्या और उनमें पढ़ रहे करोड़ों छात्र-छात्राएं शिक्षा को प्राप्त करने के नजरिए  से देखें तो इन विद्यालयों में सफाई को लेकर कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं है। सरकार, विभाग और मीडिया का रोल भी समझ से परे है। कभी तो सफाई को श्रम से जोड़कर देखा जाता है और कभी इसे अत्याचार बताया जाता है।


सरकार का मानना है कि परिषदीय विद्यालयों में सफाई का कार्य छात्रों द्वारा स्वयं किया जाना चाहिए। इसके लिए सरकार ने कुछ योजनाएं भी शुरू की हैं, जैसे कि "स्वच्छ भारत मिशन"। इस मिशन के तहत छात्रों को सफाई के प्रति जागरूक करने और उन्हें सफाई का कार्य करने के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया जा रहा है।


हालांकि, सरकार की यह नीति कई लोगों के लिए अस्वीकार्य है। उनका मानना है कि छात्रों को पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए, न कि सफाई पर। इसके अलावा, छात्रों को सफाई का कार्य करने से उनकी शारीरिक और मानसिक विकास पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।


इस मामले में विभाग का कोई स्पष्ट रुख नहीं है। हालांकि, विभाग के पास खुद के कोई विभागीय सफाई कर्मचारी भी नहीं हैं, जिससे सफाई का कार्य ठीक से नहीं हो पाता है। इसके अलावा, पंचायत में लगे सफाई कर्मियों से काम लेना संभव नहीं हो पाया है अब तक। ज्यादातर जगह शिक्षकों द्वारा बच्चों या रसोइयाओं द्वारा सफाई का कार्य कराया जाता है।


मीडिया भी इस मुद्दे पर दोहरे रवैया अपनाती है। कभी तो मीडिया सरकार की सफाई की पहल की सराहना करती है, और कभी तो सरकार को छात्रों को सफाई के लिए मजबूर करने के लिए आलोचना करती है।


जिले स्तर पर मीडिया रिपोर्टिंग के समक्ष शिक्षा अधिकारियों द्वारा पूरे मामले को समझने के बावजूद समर्पण करने से भी स्थितियां प्रतिकूल हो जाती हैं। मीडिया को असलियत बताने के बजाय मामले में शिक्षकों के मुंह बंद किए जाने के लिए निलंबन और वेतन रोकने जैसी कार्यवाहियां की जाती है। इससे शिक्षकों में सरकार और विभाग के प्रति आक्रोश बढ़ता है और वे इस मुद्दे को लेकर आवाज उठाने से डरने लगते हैं।


जिस विभाग में सफाई के लिए डेडीकेटेड कर्मचारी नहीं हों वहां दिन प्रतिदिन की सफाई करेगा कौन? इस सवाल का जवाब विभाग के पास नहीं है। विभाग के कर्मचारियों की कमी के कारण सफाई का कार्य ठीक से नहीं हो पाता है। इससे विद्यालयों में गंदगी और दुर्गंध फैलती है, जो छात्रों और शिक्षकों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।


इन समस्याओं को दूर करने के लिए सरकार, विभाग और मीडिया को एक साथ मिलकर काम करना होगा। सरकार को छात्रों को पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। विभाग को पर्याप्त सफाई कर्मचारी नियुक्त करने चाहिए और उन्हें विद्यालय  में ही उपस्थिति हेतु बाध्य करना चाहिए। मीडिया को भी इस मुद्दे पर एक पक्षपाती रवैया नहीं अपनाना चाहिए।



यहाँ कुछ सुझाव दिए गए हैं जिन पर सरकार, विभाग और मीडिया को विचार करना चाहिए:

🟣 सरकार को परिषदीय विद्यालयों में सफाई के लिए एक अलग कैडर का गठन करना चाहिए, या फिर गांव से ही मानदेय पर केवल स्कूल सफाई हेतु कर्मी नियुक्त करना चाहिए।

🟣 सरकार को छात्रों को सफाई के लिए मजबूर नहीं करना चाहिए। बल्कि सरकार को छात्रों को सफाई के प्रति जागरूक करने के लिए कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए।

🟣 विभाग को सफाई के कार्य को ठीक से करने के लिए सफाई कर्मचारियों को प्रशिक्षण देना चाहिए।

🟣 मीडिया को इस मुद्दे पर एक निष्पक्ष रवैया अपनाना चाहिए।


इन सुझावों को लागू करने से उत्तर प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों में सफाई के मुद्दे को हल करने में मदद मिलेगी।


✍️ लेखक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित शिक्षक
फतेहपुर

Post a Comment

 
Top