"जिज्ञासा और कल्पना दो ऐसे गुण हैं जो हमें सीखने, बढ़ने और बदलने में मदद करते हैं।" - मारिया मान्टेसरी


जिज्ञासा और कल्पना दो ऐसे गुण हैं जो मनुष्य को अन्य प्राणियों से अलग बनाते हैं। ये गुण हमें सीखने, विकसित होने और नए विचारों को जन्म देने में मदद करते हैं। शैक्षिक विमर्श में इन गुणों का महत्व अत्यधिक है।


जिज्ञासा एक ऐसी भावना है जो हमें नई चीजों के बारे में जानने की इच्छा पैदा करती है। यह हमें खोज और अन्वेषण के लिए प्रेरित करती है। जिज्ञासा के बिना, हम कभी कुछ नया सीख नहीं सकते।

कल्पना एक ऐसी शक्ति है जो हमें नए विचारों और समाधानों को सोचने की अनुमति देती है। यह हमें वास्तविकता से परे जाने और नए संभावनाओं के बारे में सोचने में मदद करती है। कल्पना के बिना, हम रचनात्मक नहीं हो सकते।


शिक्षाशास्त्रीय दृष्टिकोण से, जिज्ञासा और कल्पना दो महत्वपूर्ण कौशल हैं जो छात्रों को सीखने और विकसित होने में मदद करते हैं।


जिज्ञासा छात्रों को नई चीजों के बारे में जानने के लिए प्रेरित करती है। यह उन्हें पाठ्यक्रम से परे जाने और अपने आसपास की दुनिया के बारे में अधिक जानने के लिए प्रोत्साहित करती है।
कल्पना छात्रों को नए विचारों और समाधानों के बारे में सोचने में मदद करती है। यह उन्हें रचनात्मक और नवाचारी बनने में मदद करती है।


पिछले कुछ वर्षों में, शैक्षिक विमर्श में जिज्ञासा और कल्पना शब्दों का प्रयोग कम होता जा रहा है। आखिर क्यों? 🤔 


इसका पहला कारण यह हो सकता है कि शिक्षा को एक व्यवसाय के रूप में देखा जाने लगा है। इस दृष्टिकोण में, शिक्षा का उद्देश्य छात्रों को नौकरी पाने के लिए तैयार करना है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए, छात्रों को अक्सर परीक्षाओं और प्रतियोगिताओं के माध्यम से मापा जाता है। इस तरह की शिक्षा में जिज्ञासा और कल्पना के लिए बहुत कम जगह होती है।


दूसरा कारण यह हो सकता है कि शिक्षा को एक प्रतिस्पर्धात्मक खेल के रूप में देखा जाने लगा है। इस दृष्टिकोण में, छात्रों को एक दूसरे से आगे निकलने के लिए प्रेरित किया जाता है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए, अक्सर छात्रों को परीक्षाओं और प्रतियोगिताओं के माध्यम से मापा जाता है। इस तरह की शिक्षा में भी जिज्ञासा और कल्पना के लिए बहुत कम जगह होती है।


जिज्ञासा और कल्पना के महत्व को देखते हुए, यह आवश्यक है कि शैक्षिक विमर्श में इन शब्दों का प्रयोग अधिक हो। ऐसा करने के लिए, हमें शिक्षा को एक व्यवसाय या प्रतिस्पर्धात्मक खेल के रूप में देखने के बजाय एक मानवीय प्रक्रिया के रूप में देखना होगा। शिक्षा का उद्देश्य छात्रों को सीखने और विकसित होने में मदद करना है, न कि उन्हें एक निश्चित पाठ्यक्रम को याद करने के लिए प्रेरित करना या उन्हें दूसरों से आगे निकलने के लिए तैयार करना।


जिज्ञासा और कल्पना को बढ़ावा देने के लिए, शिक्षकों को निम्नलिखित उपाय कर सकते हैं:


⚫ छात्रों को खोज और अन्वेषण के लिए प्रोत्साहित करें।

⚫ छात्रों को सवाल पूछने और नए विचारों को व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करें।

⚫ छात्रों को रचनात्मकता और नवाचार के लिए प्रोत्साहित करें।



जिज्ञासा और कल्पना दो ऐसे गुण हैं जो छात्रों को सीखने और विकसित होने में मदद करते हैं। इन गुणों को बढ़ावा देने से छात्रों को एक बेहतर भविष्य के लिए तैयार करने में मदद मिलेगी।



जिज्ञासा और कल्पना,
शिक्षा के दो आधार, 
इनके बिना सीखना,
अपूर्ण है विचार। ©️


जिज्ञासा और कल्पना,
सीखने की कुंजी जरूरी
इनके बिना, मानिए
शिक्षा है कतई अधूरी। ©️


जिज्ञासा और कल्पना शैक्षिक विमर्श का आधार हैं। वे छात्रों को सीखने, बढ़ने और दुनिया को बदलने के लिए आवश्यक कौशल प्रदान करते हैं। इसलिए, यह आवश्यक है कि शिक्षक इन कौशलों को बढ़ावा देने के लिए शिक्षण में जरूरी नवाचार जरूर करें।



✍️ लेखक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

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