हाल में संपन्न जी-20 शिखर सम्मेलन में इस पर भी सहमति बनी कि समूह के सदस्य देश वैश्विक स्तर पर कौशल की कमी को दूर करने पर नीति बनाएंगे और कौशल रोजगार के लिए डाटा बेस तैयार करेंगे। जी-20 के घोषणा पत्र के अनुसार शिक्षा के क्षेत्र में सभी देश गुणवत्ता युक्त शिक्षा, अनुसंधान और शोध पर भी मिलकर काम करेंगे। ज्ञात हो कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी इन्हीं सब बिंदुओं को शामिल किया गया है।


भारत कौशल प्रशिक्षण पर अधिक जोर इसलिए दे रहा है, क्योंकि दुनिया भर में सबसे अधिक युवा हमारे पास हैं और जी-20 समूह के अनेक देश ऐसे हैं, जो हुनरमंद युवाओं की कमी महसूस कर रहे हैं। यूजीसी जी-20 घोषणा पत्र में निर्धारित उच्च शिक्षा की प्राथमिकता वाले क्षेत्रों का एक रोडमैप बना रहा है। ध्यान रहे कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाकर और उसकी पहुंच सर्वसाधारण तक सुनिश्चित करने पर विशेष जोर है। गुणवत्तापूर्ण और सर्वसुलभ शिक्षा, समाजोपयोगी नवाचारी शोध तथा युवा पीढ़ी के कौशल विकास द्वारा ही राष्ट्रीय विकास का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।


इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार द्वारा 2018 में भारतीय उच्च शिक्षा आयोग तथा 2019 में राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन के गठन की घोषणा की गई। हालांकि कुछ कारणों से उनके कार्यान्वयन की गति धीमी रही, लेकिन अब उसमें तेजी आई है। अब तक उच्च शिक्षा क्षेत्र में अनेक नियामक संस्थाएं थीं। उनके अपने-अपने मानदंड एवं मापदंड हुआ करते थे।


यूजीसी, आइसीएआर, एआइसीटीई, एनसीटीई, नैक, एनआइआरएफ जैसी एक दर्जन से अधिक नियामक संस्थाएं देश के कला, विज्ञान, व्यवसाय, अभियांत्रिकी, शिक्षा, प्रबंधन, कृषि शिक्षा आदि से संबंधित उच्च शिक्षण संस्थानों एवं शोध-संस्थानों की संबद्धता, मूल्यांकन, प्रत्यायन, रैंकिंग, वित्त पोषण और नियंत्रण आदि का काम किया करती थीं। इस प्रक्रिया में ये संस्थान तमाम समस्याओं का सामना करते रहे। इन संस्थाओं पर अनियमितता एवं पक्षपातपूर्ण रवैये के आरोप भी लगते रहे। पाठ्यक्रम निर्माण एवं उनके कार्यान्वयन में भी ये नियामक संस्थाएं दोषमुक्त नहीं रही हैं। इसीलिए केंद्र सरकार ने इन सभी नियामक संस्थाओं का मूल्यांकन करते हुए इन्हें एक निकाय के अधीन लाने का निर्णय लिया। अब उच्च शिक्षा एक ही नियामक संस्था भारतीय उच्च शिक्षा आयोग के अधीन होगी, जो सीधे तौर पर शिक्षा मंत्रालय की निगरानी में काम करेगा।


भारतीय उच्च शिक्षा आयोग की विशेषता यह है कि यह एक साथ देश के तमाम केंद्रीय विश्वविद्यालयों और शीर्षस्थ उच्च शिक्षण संस्थानों जैसे आइआइटी, एनआइटी, आइआइआइटी आदि का नियमन और नियंत्रण करते हुए उनके मूल्यांकन, प्रत्यायन, रैंकिंग एवं वित्तपोषण आदि का काम करेगा। इस आयोग के चार आयाम होंगे। इन चार आयामों को क्रमशः राष्ट्रीय उच्च शिक्षा विनियामक परिषद, राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद, उच्चतर शिक्षा अनुदान परिषद तथा सामान्य शिक्षा परिषद के नाम से जाना जाएगा। राष्ट्रीय उच्च शिक्षा विनियामक परिषद उच्च शिक्षण संस्थानों के नियंत्रक के रूप में काम करेगी। वहीं राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद उच्च शिक्षण संस्थानों के मूल्यांकन, प्रत्यायन और रैंकिंग का काम करेगी। उच्च शिक्षण संस्थानों के वित्तपोषण का काम उच्चत्तर शिक्षा अनुदान परिषद द्वारा किया जाएगा।


अब तक इन संस्थानों के वित्तपोषण का काम यूजीसी आदि कई एजेंसियां करती थीं। वहीं सामान्य शिक्षा परिषद पाठ्यचर्या और शिक्षण से जुड़े मामले देखेगी। इनके नवीकरण की जिम्मेदारी भी इसी की होगी। इससे देश के उच्च शिक्षण संस्थानों को मौजूदा अलग-अलग नियामक संस्थाओं के चक्कर काटने से मुक्ति मिलेगी एवं ये शिक्षण संस्थान राष्ट्रीय शिक्षा नीति के लक्षित उद्देश्यों की प्राप्ति की दिशा में तत्पर होंगे। औपनिवेशिक काल से ही जनसंख्या के अनुपात में उच्च शिक्षण संस्थानों की संख्या एवं गुणवत्ता की दृष्टि से भारत की स्थिति सुखद नहीं है। यहां लगभग एक हजार विश्वविद्यालयों एवं 40 हजार कालेजों के साथ दुनिया की सबसे बड़ी उच्च शिक्षा प्रणाली है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली के अनुपात में यह बहुत सीमित है।