नीति नियंताओं को समझना होगा कि बच्चे परिवार, समाज और परिवेश से भी सीखते हैं



शिक्षा एक सतत प्रक्रिया है जो जीवन भर चलती रहती है। बच्चे जन्म से ही सीखना शुरू कर देते हैं। वे अपने परिवार, समाज और परिवेश से बहुत कुछ सीखते हैं। स्कूल केवल एक औपचारिक शिक्षा का माध्यम है।


बच्चे अपने परिवार से बहुत कुछ सीखते हैं। वे अपने माता-पिता, भाई-बहनों और अन्य परिजनों से सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों, नैतिकता, व्यवहार, और जीवन कौशल सीखते हैं। वे अपने परिवार के सदस्यों के साथ बातचीत और सहयोग करके भी बहुत कुछ सीखते हैं।


बच्चे अपने समाज से भी बहुत कुछ सीखते हैं। वे अपने पड़ोसियों, दोस्तों, और अन्य लोगों से अपने समाज के बारे में सीखते हैं। वे अपने समाज के विभिन्न पहलुओं जैसे कि संस्कृति, भाषा, धर्म, और परंपराओं के बारे में सीखते हैं। वे अपने समाज के नियमों और रीति-रिवाजों को भी सीखते हैं।


बच्चे अपने परिवेश से भी बहुत कुछ सीखते हैं। वे अपने आसपास की दुनिया को देखकर, सुनकर, सूंघकर, छूकर, और चखकर सीखते हैं। वे प्रकृति से, जानवरों से, और अन्य जीवों से भी बहुत कुछ सीखते हैं।


हालांकि, शिक्षा के कुछ जिम्मेदारों का मानना है कि स्कूल ही बच्चों को सिखाने का एकमात्र जरिया है। वे तर्क देते हैं कि स्कूल में बच्चों को औपचारिक शिक्षा दी जाती है जो उन्हें जीवन में सफल होने के लिए आवश्यक है। वे यह भी तर्क देते हैं कि स्कूल में बच्चों को अन्य बच्चों के साथ सामाजिक संपर्क करने का अवसर मिलता है जो उनके विकास के लिए महत्वपूर्ण है।


हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि स्कूल केवल एक औपचारिक शिक्षा का माध्यम है। बच्चों को अपने परिवार, समाज और परिवेश से भी बहुत कुछ सीखना चाहिए। इन सभी कारकों का बच्चों के विकास और सीखने पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।


इसलिए, यह जरूरी है कि बच्चों को स्कूल, परिवार, समाज और परिवेश सभी से सीखने का अवसर दिया जाए। इससे उन्हें एक संतुलित और समग्र शिक्षा मिल सकेगी जो उन्हें जीवन में सफल होने में मदद करेगी।



✍️ लेखक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित शिक्षक
फतेहपुर

Post a Comment

 
Top